Hindi Shayari
वसीम बरेलवी की मशहूर शेरो शायरी
वसीम बरेलवी का जन्म 8 फरवरी 1940 को उनके ननिहाल बरेली में हुआ था, बचपन का नाम जाहिद हसन था, बचपन से ही वसीम बरेलवी शायरी में काफी रूचि रखते थे, वसीम बरेलवी हिन्दी शायरी और उर्दू शायरी के मशहूर शायर हैं,
वसीम बरेलवी की चुनिंदा मशहूर शेरो शायरी का कलेक्शन आपके साथ सांझा कर रहे हैं।
आईये दोस्तों पढ़ते हैं वसीम बरेलवी की मशहूर शेरो शायरी –
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए.
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता,‘मगर’ इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता.
मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है,ये रूठ जाएँ तो फिर लौट कर नहीं आते.
उसे समझने का कोई तो रास्ता निकले,मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले.
एक मंज़र पे ठहरने नहीं देती फ़ितरत,उम्र भर आँख की क़िस्मत में सफ़र लगता है.
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा,किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता.
चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन,झूट से हारते देखा नहीं सच्चाई को.
वो जितनी दूर हो उतना ही मेरा होने लगता है,मगर जब पास आता है तो मुझ से खोने लगता है.
निगाहों के तक़ाज़े चैन से मरने नहीं देते,यहाँ मंज़र ही ऐसे हैं कि दिल भरने नहीं देते.
क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया,उम्र-भर किस किस के हिस्से का सफ़र मैं ने किया.
जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है सदियों से,कहीं हयात उसी फ़ासले का नाम न हो.
झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए,और मैं था कि सच बोलता रह गया.
अपने अंदाज़ का अकेला था,इस लिए मैं बड़ा अकेला था.
हम अपने आप को इक मसला बना न सके,इसलिए तो किसी की नज़र में आ न सके.
उस ने मेरी राह न देखी और वो रिश्ता तोड़ लिया,जिस रिश्ते की ख़ातिर मुझ से दुनिया ने मुँह मोड़ लिया.
तुम साथ नहीं हो तो कुछ अच्छा नहीं लगता,इस शहर में क्या है जो अधूरा नहीं लगता.
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र,रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा.
दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी,भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी.
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता,तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता.
आज पी लेने दे जी लेने दे मुझ को साक़ी,कल मिरी रात ख़ुदा जाने कहाँ गुज़रेगी,
हर शख़्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ़,फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले.
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