120+ Mirza Ghalib Shayari in Hindi | मिर्जा गालिब शायरी
Mirza Ghalib Shayari in Hindi : मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 को आगरा में हुआ था, मिर्जा गालिब का पूरा नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान का था, उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के एक महान शायर थे. जिनकी शायरी के चर्चे आज भी हर जगह होते हैं, 15 फरवरी सन 1869 को मिर्जा गालिब साहब इस दुनिया को छोडकर हमेशा के लिए चले गए, लेकिन आज भी लोग मिर्जा गालिब की शायरी सुनना और पढना पसंद करते हैं, इसीलिए हम इस पोस्ट में Mirza Ghalib Shayari in Hindi, Mirza Ghalib Shayari Image, लायें हैं. जो आपको बहुत पसंद आएगी।
Best Mirza Ghalib Shayari
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब,
नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नहीं होते.
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे.
इश्क़ ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के.
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे.
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को ‘गालिब’ ये ख्याल अच्छा है.
दुःख दे कर सवाल करते हो,
तुम भी ग़ालिब कमाल करते हो.
इश्क मुझको नहीं, वहशत ही सही,
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही.
आया है बेकसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब,
किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद.
कुछ लम्हे हमने खर्च किए थे मिले नही,
सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया.
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजीऐ.
गुजर रहा हूँ यहाँ से भी गुजर जाउँगा,
मैं वक्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा.
बक रहा हूँ जूनून में क्या क्या कुछ,
कुछ ना समझे खुदा करे कोई.
Mirza Ghalib Shayari in Hindi
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है.
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
वो आए घर में हमारे खुदा की कुदरत है,
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं.
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘गालिब’
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे.
इसलिए कम करते हैं जिक्र तुम्हारा,
कहीं तुम खास से आम ना हो जाओ.
मैं नादान था जो वफा को तलाश करता रहा ग़ालिब,
यह न सोचा की,
एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी.
वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल नहीं,
दिल का दौरा क्या पड़ा ये दाग भी धुल गया.
लोग कहते है दर्द है मेरे दिल में,
और हम थक गए मुस्कुराते मुस्कुराते.
वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,
उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया.
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ़्तगू क्या है.
मिर्जा गालिब की शायरी
हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो,
हमारा शहर तो बस यूँ ही रास्ते में आया था.
हम को उन से वफा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफा क्या है.
मौत पे भी मुझे यकीन है,
तुम पर भी ऐतबार है,
देखना है पहले कौन आता है,
हमें दोनों का इंतजार है.
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम ना होते ना सही ज़िक्र तुम्हारा होता.
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं,
फिर वही जिंदगी हमारी है.
जिंदगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफन भी लेते है तो अपनी जिंदगी देकर.
कितना खौफ होता है रात के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदो से जिनके घर नहीं होते.
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो.
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है.
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