मिर्जा गालिब की 20 मशहूर शेरो शायरी
मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 को आगरा में हुआ था, मिर्जा गालिब का पूरा नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान का था, उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के एक महान शायर थे. इस पोस्ट में हम मिर्जा गालिब की 20 मशहूर शेरो शायरी लेकर आए हैं।

आईये दोस्तों पढ़ते हैं मिर्जा गालिब की 20 मशहूर शेरो शायरी-
1. हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.
2. उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
3. रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
4. वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं.
5. यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो.
6. मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते है जिस काफिर पे दम निकले.
7. हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है.
8. इस सादगी पे कौन न मर जाये ऐ खुदा
लड़ते है और हाथ में तलवार भी नहीं.
9. इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के.
10. क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन.
11. कितना खौफ होता है रात के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदो से जिनके घर नहीं होते.
12. मेहरबान होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक्त
में गया वक्त नहीं हूँ की फिर आ भी न सकूँ.
13. बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे.
14. आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है, तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.
15. इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.
16. हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है.
17. जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है.
18. इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे.
19. हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.
20. रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है.
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