खूब बदला लेते हो मेरे प्यार का, नाराज़ होकर बात बात पर.

आज कल एक ख़ामोश आवाज़ हूँ मैं, क्योंकि खुद से ही नाराज़ हूँ मैं.

ख़ुशी की तलाश में घर से थे निकले, चार गम लेकर वापिस लौटे हैं.

इससे बुरे और क्या दिन आएंगे, वो हमसे इतने नाराज़ पेश आएंगे.

इससे आगे एक और कदम बड़ लो ना, नरागज़ी छोड़कर मुझसे बात कर लो ना.

कभी धुप कभी बरसात होती है, जब जब मेहबूबा नाराज़ होती है.

कभी धुप से चेहरा छुपाता था मेरा, आज वही आँचल नाराज़ है मुझसे.

तुझसे नहीं तेरे वक्त से नाराज़ हूँ मैं, जो तुझे कभी मेरे लिए मिला ही नहीं.

मोहब्बत की ये भी एक शर्त है साहेब, सबकुछ पा कर सबकुछ खोना पड़ता है.

नाराजगी शायरी

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