वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो, हौसले मुश्किलों में पलते हैं.

तब हम दोनो वक्त चुका कर लाते थे, अब मिलते है जब भी फुर्सत होती है.

ऐ सफर इतना बेकार तो ना जा, ना हो मंजिल कहीं तो पहुंचा दे.

अगर लहरों को है दरिया में रहना, तो उनको होगा अब चुपचाप जाना.

बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी, ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया.

सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती, चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की.

दिल को घेरे है रोजगार के गम, रद्दी में खो गयी किताब कोई.

इस शहर में जी ने के अंदाज निराले है, होंठो पे लतीफे है आवाज़ में चाले है.

कोई शिकवा न गम न कोई याद, बैठे बैठे बस आंख भर आई.

Javed Akhtar shayari

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