यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
जरा ये़ धुप ढ़ल जा़ए ,तो़ हाल़ पू़छेंगे , य़हाँ कु़छ सा़ये , खुद़ को खुदा ब़ताते है़.