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Nasir Kazmi shayari in hindi | नासिर काज़मी शायरी
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NASIR Kazmi Shayari
आँच आती है तिरे जिस्म की उर्यानी सेपैरहन है कि सुलगती हुई शब है कोई..
आज देखा है तुझ को_देर के बअ’दआज का दिन गुज़र न जाए कहीं..
आज तो बे-सबब_उदास है जीइश्क़ होता तो कोई बात भी थी..
जुर्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही देमेरे हक़ में भी कुछ सुना ही दे..
तू ने तारों से शब की माँग भरीमुझ को इक अश्क-ए-सुब्ह-गाही दे..
उम्र भर की नवा-गरी का सिलाऐ ख़ुदा कोई हम-नवा ही दे…
उन्हें सदियों न भूलेगा ज़मानायहाँ जो हादसे कल हो गए हैं..
उस ने मंज़िल पे ला के छोड़ दियाउम्र भर जिस का रास्ता देखा..
कल जो था वो आज नहीं जो आज है कल मिट जाएगारूखी-सूखी जो मिल जाए शुक्र करो तो बेहतर है..
कौन अच्छा है इस ज़माने मेंक्यूँ किसी को बुरा कहे कोई.
आरज़ू है कि तू यहाँ आएऔर फिर उम्र भर न जाए कहीं..
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूदमहसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी..
अकेले घर से पूछती है बे-कसीतिरा दिया जलाने वाले क्या हुए..
कभी ज़ुल्फ़ों की घटा ने घेराकभी आँखों की चमक याद आई.
कहते हैं ग़ज़ल क़ाफ़िया-पैमाई है ‘नासिर’ये क़ाफ़िया-पैमाई ज़रा कर के तो देखो.
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलेंआए हैं इस गली में तो पत्थर ही ले चलें..
ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदाअपनी दुनिया देख ज़रा
अपनी धुन में रहता हूँमैं भी तेरे जैसा हूँ..
आँच आती है तिरे जिस्म की उर्यानी सेपैरहन है कि सुलगती हुई शब है कोई…
अकेले घर से पूछती है बे-कसीतिरा दिया जलाने वाले क्या हुए..
आज तो बे-सबब उदास है जीइश्क़ होता तो कोई बात भी थी..
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूदमहसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी..
आरज़ू है कि तू यहाँ आएऔर फिर उम्र भर न जाए कहीं..